होली के रंग
होली के रंगों को लेकर ऋतुराज वसंत आ गया
विकृत जीवन के पतझर में नवजीवन के गीत गा गया
वासंती पवनो की धारा बहते बहते रह जाती है,
जीवन है अनबूझ पहेली, मर्म हमें वो कह जाती है।
होली की हुडदंग आ गई, केवल तन पर रंग न डालो
उचल कूद कर पुलकित मन से मॉल मॉल मन का मेल निकालो,
रंगों की है धर बह रही, दिल को धोते वो रह जाती है,
जीवन है अनबूझ पहेली मर्म हमें वो कह जाती है ।
अन्य धर में बहते रहते, पुण्य धार की सोच नही है,
पापी मन को ही समझाते कहते मन में खोच नही है।
गिरते मूल्यों की ये धारा बहते बहते रह जाती है,
जीवन है अनबूझ पहेली मर्म हमें वो कह जाती है।
bhavo के इस वृन्दावन में phoot pada ये कालापन
सच्चे रिश्तो के भी मन में आन पड़ा अब ओछापन ,
गिरते गिरते कहाँ गिरेंगे जगह हमें दिखला जाती है ,
जीवन है अनबूझ पहेली मर्म हमें वो कह जाती है।
baasanti पवनो की धारा बहते बहते रह जाती है।
होली के रंगों को लेकर ऋतुराज वसंत आ गया
विकृत जीवन के पतझर में नवजीवन के गीत गा गया
वासंती पवनो की धारा बहते बहते रह जाती है,
जीवन है अनबूझ पहेली, मर्म हमें वो कह जाती है।
होली की हुडदंग आ गई, केवल तन पर रंग न डालो
उचल कूद कर पुलकित मन से मॉल मॉल मन का मेल निकालो,
रंगों की है धर बह रही, दिल को धोते वो रह जाती है,
जीवन है अनबूझ पहेली मर्म हमें वो कह जाती है ।
अन्य धर में बहते रहते, पुण्य धार की सोच नही है,
पापी मन को ही समझाते कहते मन में खोच नही है।
गिरते मूल्यों की ये धारा बहते बहते रह जाती है,
जीवन है अनबूझ पहेली मर्म हमें वो कह जाती है।
bhavo के इस वृन्दावन में phoot pada ये कालापन
सच्चे रिश्तो के भी मन में आन पड़ा अब ओछापन ,
गिरते गिरते कहाँ गिरेंगे जगह हमें दिखला जाती है ,
जीवन है अनबूझ पहेली मर्म हमें वो कह जाती है।
baasanti पवनो की धारा बहते बहते रह जाती है।